Lord Ganesha is the symbol of wisdom, prosperity and good fortune. गणेश चतुर्थी क्या है?

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गणेश चतुर्थी की तिथियाँ

गणेश चतुर्थी 2024: 7 सितंबर 2024 को है।
गणेश उत्सव का समापन: 17 सितंबर 2024 को अनंत चतुर्दशी के दिन होगा।

हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल चतुर्थी को हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार गणेश चतुर्थी मनाया जाता है। 

गणेश पुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार इसी दिन समस्त विघ्न बाधाओं को दूर करने वाले, कृपा के सागर तथा भगवान शंकर और माता पार्वती के पुत्र श्री गणेश जी का जन्म हुआ था।

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गणेश चतुर्थी क्या है?

गणेश चतुर्थी भारत के प्रमुख और प्रसिद्ध हिंदू त्योहारों में से एक है, जिसे बड़े धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। 

यह उत्सव विशेष रूप से महाराष्ट्र और कर्नाटक में मनाया जाता है, लेकिन इसके प्रभाव और प्रसार को देखते हुए, इसे अब पूरे देश और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में भी मनाया जाने लगा है। 

महाराष्ट्र का गणेशोत्सव तो विश्व प्रसिद्ध है और यहां इसे विनायक चौथ के नाम से भी जाना जाता है।

गणेश हिंदू देवताओं में सबसे प्रसिद्ध और सबसे अधिक पूजे जाने वाले देवताओं में से एक है।

कहते हैं कि भगवान गणेशजी का मस्तक या सिर कटने के पूर्व उनका नाम विनायक था। परंतु जब उनका मस्तक काटा गया और फिर उसे पर हाथी का मस्तक लगाया गया तो सभी उन्हें गजानन कहने लगे। 

फिर जब उन्हें गणों का प्रमुख बनाया गया तो उन्हें गणपति और गणेश कहने लगे।

एक बार देवताओं में धरती की परिक्रमा की प्रतियोगिता हुई जिसमें जो सबसे पहले परिक्रमा करके आ जाता उसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता। 

प्रतियोगिता प्रारंभ हुई परंतु गणेश जी का वाहन तो मूषक था तब उन्होंने अपनी बुद्धि का प्रयोग किया और उन्होंने अपने माता पिता शिव एवं पार्वती की ही परिक्रमा कर ली। 

ऐसा करके उन्होंने संपूर्ण ब्रह्माण्ड की ही परिक्रमा कर ली। तब सभी देवों की सर्वसम्मति और ब्रह्माजी की अनुशंसा से उन्हें अग्रपूजक माना गया। 

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इसके पीछे और भी कथाएं हैं। पंच देवोपासना में भगवान गणपति मुख्य हैं।

भगवान गणेशजी का सतयुग में वाहन सिंह है और उनकी भुजाएं 10 हैं तथा नाम विनायक। 

श्री गणेशजी का त्रेतायुग में वाहन मयूर है इसीलिए उनको मयूरेश्वर कहा गया है। उनकी भुजाएं 6 हैं और रंग श्वेत।
 
द्वापरयुग में उनका वाहन मूषक है और उनकी भुजाएं 4 हैं। इस युग में वे गजानन नाम से प्रसिद्ध हैं और उनका वर्ण लाल है। 

कलियुग में उनका वाहन घोड़ा है और वर्ण धूम्रवर्ण है। इनकी 2 भुजाएं हैं और इस युग में उनका नाम धूम्रकेतु है।


गणेश चतुर्थी की विशेषताएँ

गणेश चतुर्थी का पर्व भगवान गणेश के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। 

इस दिन को विनायक चतुर्थी या गणेशोत्सव के रूप में भी जाना जाता है। 

इस पर्व की मुख्य विशेषता यह है कि लोग अपने घरों और कार्यस्थलों में गणेश जी की मूर्तियों की स्थापना करते हैं और दस दिनों तक इनकी पूजा-अर्चना करते हैं। 

इस दौरान भक्तगण सुबह और शाम को आरती करते हैं, भगवान को मोदक और अन्य प्रसाद चढ़ाते हैं, और धार्मिक विधि-विधानों का पालन करते हैं। 

इस पर्व की अवधि में भक्तगण मांस, मदिरा और तामसिक भोजन से दूर रहते हैं और ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं।

गणेश चतुर्थी का प्रारंभ

गणेश चतुर्थी का पर्व भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। 

सुबह 11.20 बजे से दोपहर 01.20 बजे तक का समय सबसे अच्छा रहेगा, क्योंकि इस वक्त मध्याह्न काल रहेगा, जिसमें गणेश जी का जन्म हुआ था।

यह पर्व दस दिनों तक चलता है और दसवें दिन अनंत चतुर्थी के अवसर पर गणेश जी की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है। 

गणेश मूर्ति को पानी में विसर्जित करने की परंपरा इस बात का प्रतीक है कि भगवान गणेश भक्तों के घर में निवास करने के बाद अपने दिव्य स्थान पर वापस लौट जाते हैं।

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गणेश जी की पूजा की विधि

गणेश जी को प्रसन्न करने के उपाय


भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए कई विशेष उपाय बताए गए हैं। 

इनमें दूर्वा चढ़ाना, 21 लड्डुओं का भोग लगाना, पीला चंदन का तिलक लगाना, और गेंदे के फूल अर्पित करना शामिल है। 

माना जाता है कि गणेश जी को मोदक, दूर्वा, और गेंदे के फूल अत्यंत प्रिय हैं। 

गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते समय सफाई और शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

मोदक:मोदक गणेशजी का प्रिय मिष्ठान्न माना जाता है। इसे विशेष रूप से गणेश चतुर्थी के दौरान चढ़ाया जाता है।

लड्डू: बेसन या बूंदी के लड्डू भी गणेशजी को बहुत प्रिय होते हैं और इन्हें चढ़ाने की परंपरा है।

फूल और माला: गणेशजी को दूर्वा (घास), लाल या सफेद फूल, और माला चढ़ाई जाती है। 

दूर्वा गणेशजी को अत्यंत प्रिय मानी जाती है और इसे विशेष रूप से अर्पित किया जाता है।

नारियल: पूजा में नारियल का विशेष महत्व होता है। इसे भगवान गणेश के चरणों में अर्पित किया जाता है।

फल: फल जैसे केले, सेब, अंगूर आदि गणेशजी को चढ़ाए जाते हैं।

पान-सुपारी और इलायची: पान का पत्ता, सुपारी, और इलायची भी चढ़ावा के रूप में गणेशजी को अर्पित की जाती है।

ध्यान और भक्ति: इन भौतिक चीजों के अलावा, ध्यान, भक्ति और श्रद्धा भी सबसे महत्वपूर्ण चढ़ावा माने जाते हैं।

गणेशजी की पूजा के समय उनकी आराधना और ध्यान किया जाता है, जिससे आंतरिक शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

दान और सेवा: पूजा के बाद गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, या धन दान करना भी चढ़ावे का एक रूप माना जाता है। 

गणेश मंत्र और भजन: पूजा के समय गणेश मंत्रों का जाप और भजन गाकर भगवान गणेश को प्रसन्न किया जाता है। 

वस्त्र और आभूषण: कभी-कभी लोग भगवान गणेश की मूर्ति को वस्त्र या आभूषण चढ़ाते हैं। 

विशेष रूप से सोने या चांदी के आभूषण गणेशजी को चढ़ाने की परंपरा भी है।

दूध और गुड़: कुछ लोग दूध और गुड़ भी भगवान गणेश को अर्पित करते हैं।

मान्यता है कि चंद्रमा को इस दिन नहीं देखना चाहिए, क्योंकि इसे देखने पर झूठे आरोप लगने की संभावना होती है। 

पूजा के बाद, भक्तगण ब्राह्मणों को दक्षिणा देते हैं और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए भगवान गणेश से प्रार्थना करते हैं।

गणेश जी के रूप और पूजा के नियम

गणेश जी की मूर्ति की स्थापना से संबंधित कई धार्मिक नियम भी हैं, जैसे कि गणेश जी की सूंड किस तरफ होनी चाहिए?

गणेश जी की मूर्ति की सूंड की दिशा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है, और इसे चुनने में विशेष ध्यान दिया जाता है। 

दोनों दिशाओं में सूंड वाली मूर्तियाँ पाई जाती हैं, और दोनों का अपना अलग महत्व होता है:

(LEFT) बाईं ओर (वामावर्ती सूंड):

यह सबसे सामान्य और लोकप्रिय प्रकार की मूर्ति है। गणेश जी की सूंड बाईं ओर होने का अर्थ है कि यह चंद्रमा के समान शीतल और शांति देने वाली मानी जाती है। इसे "वामपंथी" गणेश भी कहा जाता है।

बाईं ओर सूंड वाली गणेश मूर्ति को सौम्य, शांत और सुखदायक माना जाता है। यह परिवार में शांति, समृद्धि और सौहार्द को बढ़ावा देती है।

सामान्यत: घरों में और पूजा स्थलों में बाईं ओर सूंड वाली गणेश मूर्ति की स्थापना की जाती है।

(RIGHT)दाईं ओर (दक्षिणावर्ती सूंड):


गणेश जी की सूंड अगर दाईं ओर हो, तो उसे "दक्षिणावर्ती" गणेश कहा जाता है। 
यह सूंड सूर्य के समान उग्र मानी जाती है। 

गणेश जी की अधिकांश मूर्तियां सीधी अथवा उत्तर दिशा की ओर सूंड वाली होती हैं। 

ऐसा माना जाता है कि जब भी दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके गणेश जी की मूर्ति बनाई जाती है तो वह टूट जाती है। 

ऐसा कहा जाता है कि अगर संयोग से आपको दक्षिणावर्ती मूर्ति मिल जाए और उसकी विधिवत पूजा की जाए तो आपको मनोवांछित फल मिलता है।

दाईं ओर सूंड वाली मूर्ति की पूजा विशेष ध्यान और नियमों के अनुसार करनी होती है, क्योंकि इसे उग्र और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। 

इस प्रकार की मूर्ति को आमतौर पर मंदिरों या विशेष अनुष्ठानों में ही रखा जाता है और इसकी पूजा विशेष विधि से की जाती है। 

आमतौर पर दाएं हाथ की सूंड़ वाले गणेशजी को तंत्र विधि से पूजा जाता है. साथ ही दक्षिण दिशा में यमलोक है, जहां पाप-पुण्य का हिसाब रखा जाता है. इसलिए इसे अप्रिय माना जाता है.

इसलिए, यदि आप घर में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करना चाहते हैं, तो आमतौर पर बाईं ओर सूंड वाली मूर्ति का चयन किया जाता है, क्योंकि यह सुख-शांति और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है।


गणेशजी की शारीरिक संरचना

गणेशजी की शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है। 
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शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रणव (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूँड है। 

गणेशजी का बड़ा पेट उदारता और संपूर्ण स्वीकार को दर्शाता है। 

गणेशजी का ऊपर उठा हुआ हाथ रक्षा का प्रतीक है – अर्थात, ‘घबराओ मत, मैं तुम्हारे साथ हूं’ और उनका झुका हुआ हाथ, जिसमें हथेली बाहर की ओर है,उसका अर्थ है, अनंत दान, और साथ ही आगे झुकने का निमंत्रण देना – यह प्रतीक है कि हम सब एक दिन इसी मिट्टी में मिल जायेंगे। 

गणेशजी एकदंत हैं, जिसका अर्थ है एकाग्रता। 

वे अपने हाथ में जो भी लिए हुए हैं, उन सबका भी अर्थ है। वे अपने एक हाथ में अंकुश लिए हुए हैं, जिसका अर्थ है जागृत होना और एक हाथ में पाश लिए हुए हैं जिसका अर्थ है नियंत्रण। 

जागृति के साथ, बहुत सी ऊर्जा उत्पन्न होती है और बिना किसी नियंत्रण के उससे व्याकुलता हो सकती है।

गणेशजी, हाथी के सिर वाले भगवान, एक चूहे जैसे छोटे से वाहन पर चलते हैं इसका एक गहरा रहस्य है। 

एक चूहा उन रस्सियों को काट कर अलग कर देता है जो हमें बांधती हैं। चूहा उस मन्त्र के समान है जो अज्ञान की अनन्य परतों को पूरी तरह काट सकता है और उस परम ज्ञान को प्रत्यक्ष कर सकता है जिसके भगवान गणेश प्रतीक हैं। 

गणेश जिन्हे गणपति, विनायक, लंबोदर और पिल्लैयार के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू देवताओं में सबसे प्रसिद्ध और सबसे अधिक पूजे जाने वाले देवताओं में से एक है और गणपति संप्रदाय में सर्वोच्च देवता है, उनके चित्रण पूरे भारत में पाए जाते हैं।

गणेशजी के दो विवाह हुए हैं। उनकी पत्नियों के नाम सिद्धि और बुद्धि हैं।

गणेश जी के ससुर का नाम विश्वरूप था। ये भी प्रजापति थे। इनकी दो कन्यायें थीं, सिद्धि और बुद्धि। 

भगवान ब्रह्मा ने भगवान गणेश का विवाह सिद्धि और ऋद्धि (जिन्हें बुद्धि भी कहा जाता है) से कराया था। 

गणेश जी को रिद्धि से क्षेम और सिद्धि से लाभ नाम के दो पुत्र हैं। 

जब कार्तिकेय दक्षिण में असुरों से संग्राम के लिए गए थे और उन्होंने युद्ध में असुरों को पराजित कर दिया था, तब भगवान शिव ने गणेश जी के पुत्र का नाम क्षेम रखा। 

माता पार्वती उनको प्रेम से लाभ नाम से पुकारती थीं। 

संतोषी माता भगवान गणेश की पुत्री हैं।


गणेश चतुर्थी पूजन विधि

इस पर्व पर लोग प्रातः काल उठकर सोने, चांदी, तांबे अथवा मिट्टी के गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर षोडशोपचार विधि से उनका पूजन करते हैं। 

पूजन के पश्चात् नीची नज़र से चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मणों को दक्षिणा देते हैं। 

इस पूजा में गणपति को 21 लड्डुओं का भोग लगाने का विधान है। 

मान्यता के अनुसार इन दिन चंद्रमा की तरफ नही देखना चाहिए।

नारद पुराण के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी को विनायक व्रत करना चाहिए। यह व्रत करने के कुछ प्रमुख नियम निम्न हैं:

 * इस व्रत में आवाहन, प्रतिष्ठापन, आसन समर्पण, दीप दर्शन आदि द्वारा गणेश पूजन करना चाहिए।

* पूजा में दूर्वा अवश्य शामिल करें।

* गणेश जी के विभिन्न नामों से उनकी आराधना करनी चाहिए।

* नैवेद्य के रूप में पांच लड्डू रखें।

* इस दिन रात के समय चन्द्रमा की तरफ नहीं देखना चाहिए, ऐसा माना जाता है कि इसे देखने पर झूठे आरोप झेलने पड़ते हैं।

* अगर रात के समय चन्द्रमा दिख जाए तो उसकी शांति के लिए पूजा करानी चाहिए।

वैसे तो गणेश पूजा का जोश संपूर्ण भारत में नजर आता है लेकिन महाराष्ट्र का गणेशोत्सव दुनियाभर में मशहूर है। यहां इसे विनायक चौथ के नाम से भी जाना जाता है। 

गणेश चतुर्थी से शुरु हुआ यह गणेश महोत्सव 10 दिनों तक चलता है। इन दस दिनों में महाराष्ट्र का यह आध्यात्मिक रंग देखने लायक होता है। 

अंतिम दिन विभिन्न घाटों और सागर तट पर गणेश मूर्ति का विसर्जन किया जाता है।




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विसर्जन का महत्व

गणेश चतुर्थी के अंत में अनंत चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है। यह अनुष्ठान भगवान गणेश के जन्म चक्र का प्रतीक है। जिस प्रकार उन्हें मिट्टी से बनाया गया था, उसी प्रकार उनकी प्रतिमा को भी पानी में विसर्जित किया जाता है ताकि वे वापस अपने दिव्य स्थान पर लौट सकें। यह अनुष्ठान भगवान गणेश की मूर्ति को जलाशय, नदी, तालाब या समुद्र में विसर्जित करने की परंपरा है।

 
विसर्जन के पीछे कई धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कारण होते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:

  • भगवान गणेश के पृथ्वी पर आगमन और वापसी का प्रतीक: गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना इस विश्वास के साथ की जाती है कि वे इस दौरान पृथ्वी पर अपने भक्तों के बीच रहते हैं। दस दिनों के बाद विसर्जन का अर्थ है कि भगवान गणेश अपने स्वर्गीय निवास में लौट रहे हैं। यह चक्र भगवान गणेश के पृथ्वी पर आगमन और फिर से अपने दिव्य स्थान पर लौटने का प्रतीक है।
  • मिट्टी से बने भगवान गणेश और प्रकृति में वापसी: भगवान गणेश की मूर्तियाँ प्रायः मिट्टी से बनाई जाती हैं, जो पृथ्वी के तत्वों का प्रतीक होती हैं। जब मूर्ति को जल में विसर्जित किया जाता है, तो वह मिट्टी फिर से प्रकृति में विलीन हो जाती है। यह पर्यावरणीय संतुलन का प्रतीक है और सिखाता है कि हर चीज का अंत उसी स्रोत में होता है, जिससे वह उत्पन्न हुई है।

  • अहम से मुक्ति और अनासक्ति का प्रतीक: विसर्जन यह भी सिखाता है कि जीवन में किसी भी चीज से अत्यधिक आसक्ति नहीं होनी चाहिए। भक्ति और पूजा के बाद, भगवान की मूर्ति को विसर्जित करना हमें यह सिखाता है कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है, और हमें अनासक्ति की भावना को समझना चाहिए। यह हमें इस बात का एहसास दिलाता है कि सांसारिक चीजों के प्रति अत्यधिक आसक्ति से मुक्ति पाना ही सच्ची भक्ति है।

  • पुनर्जन्म और नवीकरण का संकेत: गणेश विसर्जन पुनर्जन्म और नवीकरण का प्रतीक भी है। जिस प्रकार भगवान गणेश की मूर्ति जल में विसर्जित की जाती है और फिर से मिट्टी में परिवर्तित होती है, यह हमें जीवन के चक्र के बारे में याद दिलाती है - जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म। यह प्रक्रिया हर वर्ष नए उत्साह और नवीनीकरण के साथ गणेश चतुर्थी मनाने का संकेत देती है।

  • समुदाय और समर्पण की भावना: विसर्जन का आयोजन सामूहिक रूप से किया जाता है, जहां लोग एकजुट होकर भगवान गणेश की विदाई करते हैं। यह समर्पण और समुदाय की भावना को बढ़ावा देता है, जिसमें लोग मिलकर भगवान गणेश को विदाई देते हैं और अगले वर्ष फिर से उनके आगमन की प्रतीक्षा करते हैं।

  • नैतिक और आध्यात्मिक शुद्धिकरण: विसर्जन के दौरान किए जाने वाले मंत्रों और पूजा-पाठ का उद्देश्य आध्यात्मिक शुद्धिकरण और मन की शांति प्राप्त करना होता है। यह भक्तों को उनके दोषों, पापों और कष्टों से मुक्त करने का प्रतीक है। भगवान गणेश के जल में विलीन होने के साथ ही यह विश्वास किया जाता है कि उनके साथ भक्तों की समस्याएं और कठिनाइयां भी दूर हो जाती हैं।

  • परंपरा और संस्कार


गणेश मूर्ति के पीछे दर्पण क्यों रखें?

गणेश मूर्ति के पीछे दर्पण रखने की परंपरा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इस प्रथा के पीछे कुछ प्रमुख कारण हैं:

  • ऊर्जा का परावर्तन: दर्पण को ऊर्जा का परावर्तक माना जाता है। गणेश जी की मूर्ति के पीछे दर्पण रखने से उनकी मूर्ति से उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा पूरे कमरे में फैलती है। ऐसा माना जाता है कि दर्पण के माध्यम से गणेश जी की कृपा और आशीर्वाद दुगुनी मात्रा में प्राप्त होते हैं।
  • प्रभु की उपस्थिति का अनुभव: दर्पण में गणेश जी की छवि दिखाई देती है, जो भक्तों को यह अनुभव कराती है कि भगवान हर जगह उपस्थित हैं। यह उन्हें मानसिक और आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।
  • अनंतता का प्रतीक: दर्पण अनंतता का प्रतीक होता है। गणेश जी के पीछे दर्पण रखने से ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान गणेश की शक्ति और कृपा असीमित है, जो भक्तों को अनंत आशीर्वाद प्रदान करती है।
  • सजावट और सौंदर्य: कई बार दर्पण को सजावट के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। यह पूजा स्थल को सुंदर और भव्य बनाता है, जिससे वातावरण और भी पवित्र और आध्यात्मिक लगता है।
  • समृद्धि और सुख-शांति: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गणेश जी की मूर्ति के पीछे दर्पण रखने से घर में सुख-शांति, समृद्धि और सद्भावना बनी रहती है। दर्पण से भगवान की छवि का परावर्तन घर के वातावरण को सकारात्मक बनाता है।
इस प्रकार, गणेश जी की मूर्ति के पीछे दर्पण रखने की परंपरा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि वास्तु और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।


घर में गणेश जी की कितनी मूर्तियों या फोटो होनी चाहिए?

घर में गणेश जी की मूर्तियों या फोटो की संख्या पर पारंपरिक और धार्मिक मान्यताएँ विभिन्न होती हैं, लेकिन सामान्यतः निम्नलिखित दिशानिर्देश दिए जाते हैं:


सम संख्या (2, 4, 6): अधिकांश धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गणेश जी की मूर्तियों या तस्वीरों की सम संख्या रखना शुभ माना जाता है। जैसे 2, 4, 6 आदि।

सम संख्या में गणेश जी की मूर्तियाँ या तस्वीरें रखने से घर में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि बनाए रखने में मदद मिलती है।


स्थायी प्रतिष्ठान: घर के पूजा स्थल में गणेश जी की एक स्थायी मूर्ति या तस्वीर होनी चाहिए, जिससे नियमित पूजा और आराधना की जा सके।


अस्थायी प्रतिष्ठान: विशेष अवसरों जैसे गणेश चतुर्थी के दौरान आप अस्थायी गणेश जी की मूर्ति या फोटो भी स्थापित कर सकते हैं, जिनका विसर्जन या स्थानांतरण पर्व के बाद किया जाता है।


भव्य पूजा स्थलों पर: बड़े पूजा स्थलों या मंदिरों में अधिक गणेश जी की मूर्तियाँ या तस्वीरें हो सकती हैं, लेकिन घर में सीमित संख्या में रखना अधिक उचित होता है ताकि पूजा स्थल पर एक संतुलन बना रहे।


संबंधित धार्मिक मान्यताएँ: कुछ मान्यताओं के अनुसार, घर में केवल एक गणेश जी की मूर्ति या फोटो रखने की सलाह दी जाती है, ताकि पूजा और ध्यान में एकाग्रता बनी रहे।


गणपति को घर में कहां रखें?

गणपति को घर में स्थापित करने के लिए निम्नलिखित दिशाओं और स्थानों का ध्यान रखना चाहिए:

  • उत्तरी या उत्तर-पूर्व दिशा: गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर को घर में उत्तर, उत्तर-पूर्व (ईशान) दिशा में रखना सबसे शुभ माना जाता है। इस दिशा को सुख, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।
  • पश्चिम दिशा: पश्चिम दिशा भी गणेश जी की मूर्ति रखने के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इस दिशा में गणेश जी की उपस्थिति से घर में शांति और सुकून मिलता है।
  • मुख्य द्वार के पास: घर के मुख्य द्वार पर गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर लगाना भी शुभ होता है, खासकर अगर द्वार उत्तर या दक्षिण दिशा में हो। यह घर में प्रवेश करने वाली ऊर्जा को सकारात्मक बनाता है। लेकिन जिस घर में मुख्यद्वार पूर्व या पश्चिम दिशा में हो, वहां गणेश जी की प्रतिमा नहीं लगाना चाहिए।
  • पूजा स्थल:पूजा स्थल या पूजा कमरे में गणेश जी की मूर्ति को स्थापित करना सबसे उचित होता है। इस स्थान पर नियमित पूजा, आराधना और ध्यान किया जा सकता है।
  • दक्षिण दिशा से बचें:गणेश जी की मूर्ति को दक्षिण दिशा में नहीं रखना चाहिए। यह दिशा मृत्यु, पाप और नकारात्मक ऊर्जा से जुड़ी मानी जाती है।
  • शौचालय या रसोई के पास:गणेश जी की मूर्ति को शौचालय, बाथरूम या रसोई के पास स्थापित नहीं करना चाहिए। इन स्थानों पर धार्मिक और आध्यात्मिक वस्तुओं को रखना उचित नहीं माना जाता।
  • गणपति की मूर्ति खरीदते समय इस बात का ध्यान रखें कि बप्पा की मूर्ति में मूषक जरूर हो और उनके हाथ में मोदक भी हो. इस तरह की मूर्ति लाना भी बेहद शुभ माना जाता है. मोदक गणेश भगवान को बेहद प्रिय होता है वहीं मूषक उनका वाहन है. 
  • घरों के लिए सफ़ेद रंग और सिंदूर के रंग की प्रतिमा की गणपति की मूर्तियाँ सबसे अच्छा विकल्प हैं। सफ़ेद रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक है। यह आपके घर में समृद्धि और शांति लाने में आपकी मदद कर सकता है। 
  • वास्तु शास्त्र के अनुसार, आम पीपल और नीम से बनी गणेश जी की मूर्ति घर के अंदर जरूर रखनी चाहिए। 


गणेश जी को क्या नहीं चढ़ाना चाहिए?

वैसे तो तुलसी कई हिंदू देवी-देवताओं को चढ़ाई जाती है, लेकिन आपको इसे भगवान गणेश को नहीं चढ़ाना चाहिए।
ऐसा माना जाता है कि तुलसी की विवाह की मंशा जानने पर गणेशजी ने खुद को ब्रह्मचारी बताया और प्रस्ताव को ठुकरा दिया.

विवाह प्रस्ताव ठुकराने पर तुलसी ने नाराज होकर गणेशजी को शाप दिया कि उनके एक नहीं, बल्कि दो विवाह होंगे. इस पर श्री गणेश ने भी तुलसी को शाप दे दिया कि तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा.
ऐसा माना जाता है कि आपको भगवान गणेश या उनके परिवार के किसी अन्य सदस्य को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए। गणेश जी को सफेद चीजें जैसे - सफेद रंग के फूल, वस्त्र, सफेद जनेऊ, सफेद चंदन आदि अर्पित नहीं करना चाहिए, क्योंकि सफेद चीजों का संबंध चंद्रमा से माना गया है।

पौराणिक कथा के अनुसार चंद्रदेव ने एक बार भगवान गणेश के रूप का मजाक बनाया था, जिसके बाद गणेश जी ने चंद्रमा को श्राप दे दिया था. इसलिए गणपति को सफेद रंग के फूल, वस्त्र, सफेद जनेऊ, सफेद चंदन आदि नहीं चढ़ाना चाहिए. पूजा के दौरान गणेश जी को काले रंग के कपड़े ना पहनाएं। उन्हें लाल या पीले रंग का वस्त्र पहनाना शुभ माना जाता है। पूजा करते समय हमें विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए कि गणेश जी की पूजा में मुरझाए और सूखे फल - फूल का प्रयोग नहीं करना चाहिए.

विसर्जन के विभिन्न दिन:

  • 1.5 दिन का विसर्जन: गणेश चतुर्थी के अगले दिन किया जाता है।

  • 3 दिन का विसर्जन: स्थापना के तीसरे दिन किया जाता है।

  • 5 दिन का विसर्जन: स्थापना के पांचवें दिन किया जाता है।

  • 7 दिन का विसर्जन: स्थापना के सातवें दिन किया जाता है।

  • 9 दिन का विसर्जन: स्थापना के नौवें दिन किया जाता है।

  • 10 दिन का विसर्जन (अनंत चतुर्दशी): यह सबसे आम और पारंपरिक दिन होता है जब अधिकतर लोग भगवान गणेश की मूर्ति का विसर्जन करते हैं।
इन दिनों का चयन परिवार या समुदाय की परंपराओं, मान्यताओं और सुविधाओं के अनुसार किया जाता है। अंतिम दिन, विशेष रूप से अनंत चतुर्दशी पर, बड़े पैमाने पर शोभायात्राएँ निकाली जाती हैं, जिसमें ढोल-नगाड़ों, गीत-संगीत और नृत्य के साथ भगवान गणेश को विदा किया जाता है। यह अनुष्ठान पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही एक धार्मिक परंपरा है|

विसर्जन की इस पूरी प्रक्रिया में श्रद्धा, भक्ति और आस्था का विशेष महत्व होता है, जो गणेश चतुर्थी को और भी अधिक पवित्र और धार्मिक बनाता है। विसर्जन न केवल भगवान गणेश के प्रति हमारी आस्था का प्रतीक है.

गणेश जी का मंत्र क्या है?

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
 
गणेश जी का ये मंत्र सबसे अधिक लोकप्रिय है। इस मंत्र का अर्थ ये है कि जिनकी सुंड घुमावदार है, जिनका शरीर विशाल है, जो करोड़ सूर्यों के समान तेजस्वी हैं, वही भगवान मेरे सभी काम बिना बाधा के पूरे करने की कृपा करें।


108 Names of lord Ganesha

 1. बालगणपति : सबसे प्रिय बालक
2. भालचन्द्र : जिसके मस्तक पर चंद्रमा हो
3. बुद्धिनाथ : बुद्धि के भगवान
4. धूम्रवर्ण : धुंए को उड़ाने वाला
5. एकाक्षर : एकल अक्षर
6. एकदन्त : एक दांत वाले
7. गजकर्ण : हाथी की तरह आंखें वाला
8. गजानन : हाथी के मुख वाले भगवान
9. गजनान : हाथी के मुख वाले भगवान
10. गजवक्र : हाथी की सूंड वाला
11. गजवक्त्र : जिसका हाथी की तरह मुँह है
12. गणाध्यक्ष : सभी गणों के मालिक
13. गणपति : सभी गणों के मालिक
14. गौरीसुत : माता गौरी के पुत्र
15. लम्बकर्ण : बड़े कान वाले
16. लम्बोदर : बड़े पेट वाले
17. महाबल : बलशाली
18. महागणपति : देवो के देव
19. महेश्वर : ब्रह्मांड के भगवान
20. मंगलमूर्त्ति : शुभ कार्य के देव
21. मूषकवाहन : जिसका सारथी चूहा
22. निदीश्वरम : धन और निधि के दाता
23. प्रथमेश्वर : सब के बीच प्रथम आने वाले
24. शूपकर्ण : बड़े कान वाले
25. शुभम : सभी शुभ कार्यों के प्रभु
26. सिद्धिदाता : इच्छाओं और अवसरों के स्वामी
27. सिद्दिविनायक : सफलता के स्वामी
28. सुरेश्वरम : देवों के देव
29. वक्रतुण्ड : घुमावदार सूंड
30. अखूरथ : जिसका सारथी मूषक है
31. अलम्पता : अनन्त देव
32. अमित : अतुलनीय प्रभु
33. अनन्तचिदरुपम : अनंत और व्यक्ति चेतना
34. अवनीश : पूरे विश्व के प्रभु
35. अविघ्न : बाधाओं को हरने वाले
36. भीम : विशाल
37. भूपति : धरती के मालिक
38. भुवनपति : देवों के देव
39. बुद्धिप्रिय : ज्ञान के दाता
40. बुद्धिविधाता : बुद्धि के मालिक
41. चतुर्भुज : चार भुजाओं वाले
42. देवादेव : सभी भगवान में सर्वोपरी
43. देवांतकनाशकारी : बुराइयों और असुरों के विनाशक
44. देवव्रत : सबकी तपस्या स्वीकार करने वाले
45. देवेन्द्राशिक : सभी देवताओं की रक्षा करने वाले
46. धार्मिक : दान देने वाला
47. दूर्जा : अपराजित देव
48. द्वैमातुर : दो माताओं वाले
49. एकदंष्ट्र : एक दांत वाले
50. ईशानपुत्र : भगवान शिव के बेटे
51. गदाधर : जिसका हथियार गदा है
52. गणाध्यक्षिण : सभी पिंडों के नेता
53. गुणिन : जो सभी गुणों के ज्ञानी
54. हरिद्र : स्वर्ण के रंग वाला
55. हेरम्ब : माँ का प्रिय पुत्र
56. कपिल : पीले भूरे रंग वाला
57. कवीश : कवियों के स्वामी
58. कीर्त्ति : यश के स्वामी
59. कृपाकर : कृपा करने वाले
60. कृष्णपिंगाश : पीली भूरि आंख वाले
61. क्षेमंकरी : माफी प्रदान करने वाला
62. क्षिप्रा : आराधना के योग्य
63. मनोमय : दिल जीतने वाले
64. मृत्युंजय : मौत को हरने वाले
65. मूढ़ाकरम : जिनमें खुशी का वास होता है
66. मुक्तिदायी : शाश्वत आनंद के दाता
67. नादप्रतिष्ठित : जिसे संगीत से प्यार हो
68. नमस्थेतु : सभी बुराइयों और पापों पर विजय प्राप्त करने वाले
69. नन्दन : भगवान शिव का बेटा
70. सिद्धांथ : सफलता और उपलब्धियों की गुरु
71. पीताम्बर : पीले वस्त्र धारण करने वाला
72. प्रमोद : आनंद
73. पुरुष : अद्भुत व्यक्तित्व
74. रक्त : लाल रंग के शरीर वाला
75. रुद्रप्रिय : भगवान शिव के चहीते
76. सर्वदेवात्मन : सभी स्वर्गीय प्रसाद के स्वीकर्ता
77. सर्वसिद्धांत : कौशल और बुद्धि के दाता
78. सर्वात्मन : ब्रह्मांड की रक्षा करने वाला
79. ओमकार : ओम के आकार वाला
80. शशिवर्णम : जिसका रंग चंद्रमा को भाता हो
81. शुभगुणकानन : जो सभी गुण के गुरु हैं
82. श्वेता : जो सफेद रंग के रूप में शुद्ध है
83. सिद्धिप्रिय : इच्छापूर्ति वाले
84. स्कन्दपूर्वज : भगवान कार्तिकेय के भाई
85. सुमुख : शुभ मुख वाले
86. स्वरुप : सौंदर्य के प्रेमी
87. तरुण : जिसकी कोई आयु न हो
88. उद्दण्ड : शरारती
89. उमापुत्र : पार्वती के बेटे
90. वरगणपति : अवसरों के स्वामी
91. वरप्रद : इच्छाओं और अवसरों के अनुदाता
92. वरदविनायक : सफलता के स्वामी
93. वीरगणपति : वीर प्रभु
94. विद्यावारिधि : बुद्धि की देव
95. विघ्नहर : बाधाओं को दूर करने वाले
96. विघ्नहर्त्ता : बुद्धि की देव
97. विघ्नविनाशन : बाधाओं का अंत करने वाले
98. विघ्नराज : सभी बाधाओं के मालिक
99. विघ्नराजेन्द्र : सभी बाधाओं के भगवान
100. विघ्नविनाशाय : सभी बाधाओं का नाश करने वाला
101. विघ्नेश्वर : सभी बाधाओं के हरने वाले भगवान
102. विकट : अत्यंत विशाल
103. विनायक : सब का भगवान
104. विश्वमुख : ब्रह्मांड के गुरु
105. विश्वराजा : संसार के स्वामी
105. यज्ञकाय : सभी पवित्र और बलि को स्वीकार करने वाला
106. यशस्कर : प्रसिद्धि और भाग्य के स्वामी
107. यशस्विन : सबसे प्यारे और लोकप्रिय देव
108. योगाधिप : ध्यान के प्रभु



श्री गणेश मंत्र 

1.   ऊँ गं गणपतये नमः ।।

2.    ऊँ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ।
       निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।

3.   गणानां त्वा गणपतिं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे |
      निधीनां त्वा निधिपतिं हवामहे वसो मम आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम् ||


गणेश जी की आरती

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥ जय...

एक दंत दयावंत चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी ॥ जय...

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥ जय...

पान चढ़े फल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा ॥ जय...

'सूर' श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ॥ जय...



गणेश चालीसा

॥ दोहा ॥ 
जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल । विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल ॥ 

॥ चौपाई ॥ 
जय जय जय गणपति गणराजू । मंगल भरण करण शुभः काजू ॥
जै गजबदन सदन सुखदाता । विश्व विनायका बुद्धि विधाता ॥

वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना । तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥
राजत मणि मुक्तन उर माला । स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥

सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ॥
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता । गौरी लालन विश्व-विख्याता ॥
ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे । मुषक वाहन सोहत द्वारे ॥

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी । अति शुची पावन मंगलकारी ॥
एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ॥ 10 ॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥

अतिथि जानी के गौरी सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला । बिना गर्भ धारण यहि काला ॥
गणनायक गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥

अस कही अन्तर्धान रूप हवै । पालना पर बालक स्वरूप हवै ॥
बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना । लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ॥
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं । नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥

शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं । सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ॥ 20 ॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ॥

गिरिजा कछु मन भेद बढायो । उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ॥
कहत लगे शनि, मन सकुचाई । का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ । शनि सों बालक देखन कहयऊ ॥

पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा । बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥
गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी । सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ॥
हाहाकार मच्यौ कैलाशा । शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे । प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ॥ 30 ॥
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा । पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥

चले षडानन, भरमि भुलाई । रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें । तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥
धनि गणेश कही शिव हिये हरषे । नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई । शेष सहसमुख सके न गाई ॥

मैं मतिहीन मलीन दुखारी । करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा । जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥
अब प्रभु दया दीना पर कीजै । अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ॥ 38 ॥

॥ दोहा ॥ 
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान । नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान ॥
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश । पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ती गणेश ॥


गणेश जी का सबसे प्रसिद्ध मंदिर कौन सा है?

गणेश जी का सबसे प्रसिद्ध मंदिर श्री सिद्धिविनायक मंदिर है, जो मुंबई, महाराष्ट्र में स्थित है। यह मंदिर भारत के सबसे प्रतिष्ठित और धनी मंदिरों में से एक है। श्री सिद्धिविनायक मंदिर का निर्माण 1801 में किया गया था और यह भगवान गणेश के "सिद्धिविनायक" रूप को समर्पित है, जो भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले देवता माने जाते हैं।

Lord Ganesha is the symbol of wisdom, prosperity and good fortune.



श्री सिद्धिविनायक मंदिर की विशेषताएँ


भगवान गणेश की मूर्ति: इस मंदिर में भगवान गणेश की मूर्ति अद्वितीय है। उनकी सूंड दाईं ओर है, जो उन्हें "दक्षिणावर्ती गणपति" बनाता है। मूर्ति को एकल काले पत्थर से उकेरा गया है और यह केवल 2.5 फीट ऊंची है।

मंदिर का महत्व: यहाँ हर दिन हजारों भक्त भगवान गणेश की पूजा और दर्शन के लिए आते हैं। विशेष रूप से मंगलवार को भक्तों की भारी भीड़ होती है। यह मंदिर केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विश्वभर में प्रसिद्ध है।

अमीर और प्रसिद्ध लोग: यह मंदिर बॉलीवुड सितारों, उद्योगपतियों और राजनेताओं के बीच भी अत्यधिक लोकप्रिय है। कई प्रसिद्ध हस्तियाँ यहाँ नियमित रूप से दर्शन के लिए आती हैं।

अन्य प्रमुख गणेश मंदिर:

श्री गणेश मंदिर, दगडूशेठ हलवाई (पुणे, महाराष्ट्र)
श्री मयूरेश्वर मंदिर (मोरगांव, महाराष्ट्र) – जो अष्टविनायक यात्रा का एक प्रमुख मंदिर है।
रणथंभौर गणेश मंदिर (राजस्थान) – भारत का पहला त्रिनेत्र गणेश मंदिर।
कपिलेश्वर मंदिर (त्रिची, तमिलनाडु) – भगवान गणेश को समर्पित प्रसिद्ध मंदिर।

इन सभी मंदिरों में भक्त गणेश जी की पूजा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए दूर-दूर से आते हैं, लेकिन श्री सिद्धिविनायक मंदिर की लोकप्रियता विशेष रूप से अधिक है।

गणेश चतुर्थी पर क्या दान करना चाहिए?

गणेश चतुर्थी के दिन किसी जरूरतमंद को हरी मूंग की दाल या हरे वस्त्र का दान करें। इस दान से गणेश जी प्रसन्न होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। 

गणेश चतुर्थी के दिन गाय को हरी घास खिलाएं। ऐसा करने से गणेश जी के साथ सभी देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है।

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